यह कविता,
गुजरती जा रही है, गुजरते हुए एहसास के साथ,
सिमटती जा रही है, पल-पल के यादों के साथ,
ना अब दर्द है ना ही हंसी ,
बस शंब्द है, खामोश से ,
बेजान हो चुके है,जज्बात सारे,
यह कविता खोती जा रही है
अकेलेपन में सिमटती जा रही है ,
ना हक़ रहा ना ही लगाव
बस रह गया आड़ी -टेडी लकीरें
और बिखराव !
भावहीन-स्वरहीन, खुद में उलझती
यह कविता. !!!
Comments