तुम एक शब्द भी ना बोलते,
और यूहि चले जाते,
मौन का आवरण ओढ़े,
शब्दो के फेर से बचते,
यूहि! चले जाते,
पर! एक शब्द ना बोल पाते,
दिन ढाल जाता,
शाम धुँधलके के,
चुप्पी की चादर ओढ़े,
तुम दबे पाव आते,
पर! एक शब्द ना बोल पाते,
रात चुप्पी का चादर ओढ़े,
एक शब्द को तरसती,
करवंटो में गुजर जाती,
और तुम!
चुप अपने सपनो में गुम रहते,
रात सरकती शब्दो को तरसती,
अंधेरे में भटकती,
उजाले को खोजती..यूहि गुजर जाती,
पर! तुम एक शब्द भी ना बोलते..
और यूहि चले जाते,
मौन का आवरण ओढ़े,
शब्दो के फेर से बचते,
यूहि! चले जाते,
पर! एक शब्द ना बोल पाते,
दिन ढाल जाता,
शाम धुँधलके के,
चुप्पी की चादर ओढ़े,
तुम दबे पाव आते,
पर! एक शब्द ना बोल पाते,
रात चुप्पी का चादर ओढ़े,
एक शब्द को तरसती,
करवंटो में गुजर जाती,
और तुम!
चुप अपने सपनो में गुम रहते,
रात सरकती शब्दो को तरसती,
अंधेरे में भटकती,
उजाले को खोजती..यूहि गुजर जाती,
पर! तुम एक शब्द भी ना बोलते..
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